Friday, April 13, 2007

सर्दी


सर्द हवाओं से स्याह ,कांपते पत्ते
रात भर ओस मे भीगी घास
आज थोड़ी सी धूप पिघली है ।
यहीं कहीं आस पास ...

बर्फ से ठंडे , गीले गीले से पत्थर ,
सांसों में उतरता सीला-सीला सा मौसम
वादियों मे गेंदे की सुवास ।

आज थोड़ी सी धूप पिघली है ,
यहीं कहीं आस पास...

घर के शीशों पे साड़ी रात दस्तक दी कुहसों ने
गर्म नीदों ने उन्हें अन्दर आने न दिया
चुस्कियाँ , चाय , गर्म अंगीठी , और उबास

आज थोड़ी सी धूप पिघली है ,
यहीं कहीं आस पास..

आज फिर झील और कुहरे के बीच कुछ न रहा
आज फिर महुए ने अंगडाई ली भोर के संग
चांद लहराता रहा गोल -मोल पानी मे
चांदनी फिर वही उदास ।

आज थोड़ी सी धूप पिघली है
यहीं कहीं आस पास...

अधजली आम की लकड़ी का गुमसुम सा धुँआ
सोंधी सोंधी सी महक राख की , जो रात जली
बर्फ के पर्त पे निशान छोडती सर्दी
फिर आएगी , लायेगी गले में खराश ...

आज थोड़ी सी धूप पिघली है ,
यहीं कहीं आस पास...

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