कुएं मे सिमटी दुनिया
कहां तक ?
घर की चारदीवारी तक
दूकान के शटर तक
या ऑफिस के मेज जितनी चौड़ी ।
सब अपने अपने कुनबे समेटे
अपने अपने घोसले तक ।
गोल धरती पर
गोल गोल घूमते लोग
कुछ दो पैरों जितनी दूरी चलते
कुछ चार पहियों से जमीन पर...
जी भर के भागते लोग ।
कुछ दाँए कुछ तथाकथित बाएँ चलते
अपने अपने अनंत की ओर अग्रसर ।
कुछ नोट की पर्चियो मे उलझे
कुछ उगने की जगह खोजते
अपनी अपनी जीवनी पढ़ते
स्टोव में हवा भरते लोग ।
1 comment:
I dont have Hindi Fonts.So writing in Hinglish...
Kavita to kafi Aachi hai ...
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