Friday, April 13, 2007

लोग



कुएं मे सिमटी दुनिया

कहां तक ?
घर की चारदीवारी तक
दूकान के शटर तक
या ऑफिस के मेज जितनी चौड़ी ।


सब अपने अपने कुनबे समेटे
अपने अपने घोसले तक ।

गोल धरती पर
गोल गोल घूमते लोग
कुछ दो पैरों जितनी दूरी चलते
कुछ चार पहियों से जमीन पर...
जी भर के भागते लोग ।

कुछ दाँए कुछ तथाकथित बाएँ चलते
अपने अपने अनंत की ओर अग्रसर ।

कुछ नोट की पर्चियो मे उलझे
कुछ उगने की जगह खोजते

अपनी अपनी जीवनी पढ़ते
स्टोव में हवा भरते लोग ।

1 comment:

Unknown said...

I dont have Hindi Fonts.So writing in Hinglish...

Kavita to kafi Aachi hai ...