सर्पगंधा के वनों में घूम आया , मेरा मन.
घुप अँधेरी गुफा में बैठा ऊबा हुआ
सुबह की पहली किरण के साथ ही
सतलज में नहा आया।
नहीं रोकूंगा आज ,
यदि तोड़ ले नीले अपराजिता के फूल
या गाने लगे अचानक
पपीहे के साथ।
मन जो मछली के साथ डूबा
और मछेरे के जाल में उतराया
मन को हरे -हरे पंख लगे हैं इसे
उड़ जाने दो
रेगिस्तान के पार।
या फिर , जहाँ से नील गिरि के पर्वत शुरू होते हैं ,
बर्फ में जमकर सो लेने दो इसे ...
घुप अँधेरी गुफा में बैठा ऊबा हुआ
सुबह की पहली किरण के साथ ही
सतलज में नहा आया।
नहीं रोकूंगा आज ,
यदि तोड़ ले नीले अपराजिता के फूल
या गाने लगे अचानक
पपीहे के साथ।
मन जो मछली के साथ डूबा
और मछेरे के जाल में उतराया
मन को हरे -हरे पंख लगे हैं इसे
उड़ जाने दो
रेगिस्तान के पार।
या फिर , जहाँ से नील गिरि के पर्वत शुरू होते हैं ,
बर्फ में जमकर सो लेने दो इसे ...