Friday, April 13, 2007

मन


सर्पगंधा के वनों में घूम आया , मेरा मन.
घुप अँधेरी गुफा में बैठा ऊबा हुआ
सुबह की पहली किरण के साथ ही

सतलज में नहा आया।

नहीं रोकूंगा आज ,
यदि तोड़ ले नीले अपराजिता के फूल

या गाने लगे अचानक
पपीहे के साथ।

मन जो मछली के साथ डूबा
और मछेरे के जाल में उतराया

मन को हरे
-हरे पंख लगे हैं इसे
उड़ जाने दो

रेगिस्तान के पार।

या फिर , जहाँ से नील गिरि के पर्वत शुरू होते हैं ,
बर्फ में जमकर सो लेने दो इसे ...

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